Tuesday, 20 September 2011

मजबूरी

सारी रात देखता रहा चाँद मुझे,
शायद हमदर्दी की उम्मीद थी उसे मुझसे |
सारी रात सूरज का आईना बना रहा वह |
बूँद-बूँद पिघल, बरसा चांदनी बनके |

और मैं,
और मैं निहारने के अलावा कुछ न कर सका |

2 comments:

  1. Jo pukaarta tha her ghadi, Jo jurra tha mujh saanso se

    Koi esa shakhs agar kabhi.. Mujhe bhool jae to kya
    karun

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