Tuesday, 29 January 2013

थोड़े से करोड़ों सालों में - गुलज़ार

थोड़े से करोड़ों सालों में
सूरज की आग बुझेगी जब
और राख उड़ेगी सूरज से
जब कोई चाँद न डूबेगा
और कोई ज़मीन न उभरेगी 
दबे बुझे एक कोयले-सा टुकड़ा
यह ज़मीन का घूमेगा
भटका-भटका मद्धम ख़ाकिसतरी रौशनी में

मैं सोचता हूँ उस वक़्त अगर
काग़ज़ पे लिखी इक नज़्म कहीं
उड़ते उड़ते सूरज में गिरे
और सूरज फिर से जलने लगे
-गुलज़ार

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